नीम का पेड़
घर से शहर को जाते मुख्य रास्ते पर एक कोने में घना एवं छायादार बुजुर्ग नीम का पेड़ बेतरतीब सा खड़ा था, अपने आसपास रहनेवालों के लिए घर के किसी बुजुर्ग,किसी हमराज या पीढ़ियों की यादों का आईना , किसी की आस्था तो किसी के लिए कोई पेड़ बरकतों का पिटारा जिसके नीचे एक बड़ा चबूतरा बना था। उस परिवार का हर शख़्स पेड़ के नीचे बने आरामदायक चबूतरा पर बैठकर अपने दिन भर की थकान मिटाता, सुस्ताता और फिर अपने रास्ते चल देता ,उस रास्ते से गुजरा हर बचपन कुछ समय के लिए इस वृक्ष की छाया का आनंद जरूर लिया होगा पेड़ की उम्र मेरी उम्र से ज्यादा रही होगी क्योंकि मैं ने अपने बचपन के होश से अब तक उसे वैसा ही पाया था | उसकी आँचल घर में मूक माँ के आँचल जैसी थी शीतल छांव और रूह का सकूँ प्रदत्त करती|
उसकी जड़ें घर की नींव जैसी ही मजबूत होंगी मगर कुछ तो बदल सा गया था ,अब उस घर में | भाइयो के आपसी बट-वारे में मकान का नया हिस्सा लगना था और संशय ये था जमीन के एक टुकड़े पर वो बेतरतीब सा बेबस विछिप्त बुजुर्ग पेड़ की जीवन लीला का अंत का निर्णय |
आज उस पेड़ को अपने वजूद की कमी खलती होगी, परिवार के बुजुर्ग जिनका वो हर सुख-दुख का साथी एक समय वो भी था जब यह पेड़ ही उनके घर की पहचान थी। आस-पास के पेड़ों की बिरादरी में इस पेड़ की बड़ी इज्जत थी | तब न तो इतनी बाउंड्रीवॉल न ही घेरा था। सब परिवार एक-दूसरे से मिलजुल कर रहते थे। इस पेड़ के नीचे ही दादा जी कहानी-किस्से और चौपाल लगाते थे। अक्सर लोग इस पेड़ के नीचे बैठकर घंटों बातें किया करते, बैठकों का जलसा होता ,प्रयोजन में एक अलग रुतबा होता , कभी कभार एक दूसरे की पीठ पीछे बुराई करते किंतु पेड़ सदैव उनकी सेवा में तत्पर रहता। उसे इंसानी फ़ितरत का क्या वास्ता वह स्थिर खड़ा अपनी शाखों से निरंतर अतिथियों को हवा एवं अपने पत्तों से छाया देने में कोई कसर नहीं छोड़ता |
‘‘पेड़ भी अब वैसी छाया कहां देते? अब इसे ही देख लो कितना मोटा हो गया है परंतु ठीक से छाया तक नहीं दे रहा।’’ एक भाई
‘हां !’’ दूसरा भाई उस पेड़ की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘देखो तो सही कितना घना है फिर भी ठीक से छाया नहीं दे रहा। ऐसे पेड़ तो धरती पर बोझ हैं। ’’
‘‘इसको तो काटकर लकड़ी जलाने के काम में लेना चाहिए, कितना मोटा पेड़ है?’’ दूसरे ने पेड़ के तने की तरफ देखते हुए कहा।
“पेड़ के कट जाने पर जमीन भी समतल हो जाएगी वहां एक कमरा आराम से निकल आएगा अभी तो इसकी पत्तिया और डाल घर को गन्दा किये रहती है , कट जाने के बाद साफ़ सुथरा लगेगा घर”
पेड़ ने जैसे ही यह बात सुनी उसके दिल की धड़कन बढ़ गई, किन्तु उसने हवा करना जारी रखा। पेड़ उनकी बातें सुनकर थोड़ा उदास हो गया किन्तु अभी तक धैर्य बनाए रखा था।
तभी एक भाई की पत्नी, उस पेड़ के नीचे आकर बैठे। महिला बोली - ‘‘आपकी मां को समझा देना मुझसे ताने में बातें नही करे !’’ महिला की आवाज थोड़ी तेज थी, ‘‘मैं जब से ब्याह के आई हूं, तब से महारानी साहिबा के बड़े ठाठ हैं। बना बनाया खा-खाकर इस पेड़ की तरह मोटी होती जा रही है। ऊपर से ताने मारना नही छोड़ती।’’ बोलते हुए औरत की सांसे फुल गई ।
‘‘तुम तो शांत हो जाओ शांता की मां । तुम क्यों इस पेड़ की तरह अकडू बन रही हो? घर-परिवार में छोटी-बड़ी बातें होती रहती हैं।’’ आदमी ने पत्नी की बातों का रटा-रटाया जवाब देते हुए पेड़ की तरफ देखा।
पेड़ निरंतर उनकी बातें सुनते हुए अपने पत्तों से हवा करते जा रहा था।
कुछ देर पति-पत्नी लड़ते रहे, फिर उठकर वहां से चल दिए।
पेड़ की आंखों से आंसू बह रहे थे
अप्रतिम अतिसुंदर
ReplyDeleteShukriya bhai
DeleteBahut Badhiya.
ReplyDeleteIsi naam se Premchand ji ki bhi ek rachna hai
ji bilkul,purane samay se neem ka ped hamare pariwar ka hisssa rahe hai,neem ka ped mere aine se likhi ek kahani hai ,umeed karta hun aapko passand aai hogi
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