Sunday, December 27, 2020

WHEN DAYS ARE DARK FRIENDS ARE FEW

 I just read it and fell into love with it:-(copied from https://live.fundza.mobi/home/fanz/poetry/when-days-are-dark-friends-are-few/)

Publisher
FunDza Literacy Trust
Language
Licence
All Rights Reserved.
Length
Short

copied from: https://live.fundza.mobi/home/fanz/poetry/when-days-are-dark-friends-are-few/

I thought you were my friend

But you decided to turn your back on me
When you needed me
I was there for you
When you needed support
I supported you with everything
But now I need your help
You don’t care about me, about my feelings
You care about yourself
Are you, my friend?
Or my enemy
Or my pretender
Sorry, sorry, God.
I didn’t know that friends of today
Are enemies of tomorrow?

Friday, December 25, 2020

“वो एक रात”

 “वो एक रात”

गोधूलि बेला का वक़्त, चारो ओर बिखरी लालिमा और धुप जो अब कम हो चली थी, मनो सूरज भी अब थक्कर सुस्त हो चुका हो और अपने अस्तित्व को रात की चादर से बचाने कि एक और कोशिश कर रहा हो |

ये निरंतर चलता काल चक्र आदमी को उसके अचार विचार और हालत बदलने पर मजबूर कर देते है, जैसे दिन चढ़ता सूरज और अब ये रात, जो और गहरी होने को आतुर.

कुछ क़िस्से दिल के शो केस में ज्यू के ट्यू अछूते से पड़े रहते है जिन्हें भूलने की नाकाम कोशिश व्यक्तित्व की जारी रहती है और यदा कदा किसी कहानी की सूरत में पन्नो में कैद होती जाती है| एक लम्बा समय गुज़र जाने के बाद भी क्या आप उस लिखे को चाहकर भी मिटा पाते है, जिन्हें एक किस्सा बना समय ने कहानियों के रूप में अतीत के लम्हों  में रचा गढ़ा था और मैंने कोरे सफ़ेद पन्नो में उकेरा था |

आज आहिस्ते- आहिस्ते रात का बढ़ता कद और मेरा उसका साथ, वक़्त बिताने का अजीब ये खेल. 

मन कि गति भी कितनी विचित्र होती है जिसके बिना जीने कि कल्पना भी नहीं थी, उन सारी यादो को संजोकर सादे पन्नो कि खूबसूरती मैली कि थी , आज उन सारी यादो को रद्दी कि तरह जला कर जीवन के हवन कुंड में बढ़ती रात के साथ स्वाह कर देना चाहता हूँ शायद इन अंतिम छड़ों में धुएं के पीछे अपने चहरे पर आय भावो को छुपाने कि भी एक कोशिश थी. 

इन गुज़रे बरसो में तमाम अनसुलझे अनकहे सवालो के जवाब खोजता रहा जिनसे परिस्थितियो को सँभालने कि ओर अच्छी समझ हो सकती थी | रात अब भोर में बदलने लगी थी और में अतीत के पन्नो से बहार आने कि कोशिश कर रहा था चारो फैले राख़ के ढेर इस बात के साक्ष्य थे जो इतने वर्षो से मन के किसी कोने में दबे भाव पन्नो में अनगिनत क़िस्से कहानियो के रूप में कभी दर्ज़ थे अब उनके वजूद सिर्फ यादो के गलियारों में सिमट के रह जायगा जहाँ सिर्फ मेरा ओर रात का सफर होगा |



"डायरेक्ट दिल से"

 "डायरेक्ट दिल से"

मैंने  बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं है , शायद दिल ने भी अब कुछ सोचना बंद कर दिया है। मगर आज मैंने आपने दिल से बात की, दिल बेताब था मगरअब वोअकेला था ; मेरा साथ पाकर " वो " फिर पुराने सपनो की दुनिया में लौट चलने को बेताब नज़र आया और कलम का हाथ पकड़ के पन्नो की राह पे चल निकला|

जरुरी उम्र में बहुत सी गैर जरुरी चीज़ो के पीछे भागते हुए अपने ही सपनो को दोखा देता रहा।जब उम्र थी, ख़्वाब, नए जोश उमंग तरो-ताज़ा फिर भी अपने सपनो को वक़्त में दे नहीं पाया।वजहों की तलाश तो हो सकती है मगर किसी का कोई दोष समझ नहीं आता। जो बन सकता था वो आज हूँ नहीं जो दूसरे चाहते थे वैसा कभी बन भी नहीं पाते।अब जब सब हार ही चूका हूँ मनोबल "मनकाबलनहीं, तो शायद खोने के लिये विशेष कुछ रह भी नही गया।कुछ गैरजरुरी बातों से खुद को अलग कर रहा हूँ |

 एक वाकया है जो जीवन के नीरस होते अर्थ को शायद नई परीभाषा दे सके उमीद करता हूँ आप तक इसका सार पहुंचा सकूँ|

जीवन को और पास से समझने के लिए एक दिन यूँही सुँदर सजींव छवी लेने के उद्देश्य से मैंने अपना कैमरा लिया और जंगल में रात्रि भ्रमण के निश्चय से शाम को निकल पड़ा , मैं भोर तक खाली हाथ था इस बीच मैंने विभिन्न छवियों को कैमरा में कैद कर लिया था, लेकिन उनमें  से  कोई भी मेरे उत्साह को संतुष्ट नहीं कर पा रही  थी | बेहतर कल की उम्मीद में मैं वापस लौट आया और पिछले दिन की दिनचर्या को दोहराया और उस दिनचर्या को बिना बदलाव कुछ दिनों तक जारी रखा।

दिन हफ्ते में बदले हफ्ते महीनो में और फिर मैंने आखिरकार खुद को समझाया की दिनों की गिनती अब बंद कर देनी चाहिये।

उस रात मैंने अपना कैमरा लिया, कुछ सुरक्षा गियर और सामान और निकल पडा लेकिन पहले मुझे अपने डर का सामना करना था ; जंगल के और अंदर अंधेरो में जाना था आखिरकार सुबह तक में फिर भी खाली हाथ था लेकिन मुझे एहसास हुआ कि रात मैं जब बाहर था, उस रात मैंने बहुत से जानवरो की रात्रिचर्या का का हिस्सा बना,सिहरन थी मगर उसका अलग रोमांच था। हर एक पल मेरे लिए महाकाव्य होने से संबंधित था|

अगली रात में फिर तैयार था मगर आज मुझे यकीन था में कोई छवि अपने मनः अनुसार कैमरा मेरे उत्साह को संतुष्ट कर पायेगी, उस रात मुझे पता था कि कब मैं सही तस्वीर ले पाउँगा क्योंकि मुझे पता है कि मैंने स्थिति को पहले पढ़ना और उसके लिए तैयार रहना सीख लिया था और प्रत्याशित परिणाम की प्रतीक्षा करने के लिए में अब तैयार था |

यही जिंदगी है दोस्तों ,उस रात का मुझे सिखाया गया एक बेहद जरुरी सबक ,

"जब आप चाहते है सब आपके  मन का हो, उसके लिए धैर्य ,आत्मविश्वास और अपने डर को समझना सीखना आना चाहिए , जिंदगी सिखाती है बस उसे निरंतर मौका देते रहना चाहिए"