Friday, December 25, 2020

“वो एक रात”

 “वो एक रात”

गोधूलि बेला का वक़्त, चारो ओर बिखरी लालिमा और धुप जो अब कम हो चली थी, मनो सूरज भी अब थक्कर सुस्त हो चुका हो और अपने अस्तित्व को रात की चादर से बचाने कि एक और कोशिश कर रहा हो |

ये निरंतर चलता काल चक्र आदमी को उसके अचार विचार और हालत बदलने पर मजबूर कर देते है, जैसे दिन चढ़ता सूरज और अब ये रात, जो और गहरी होने को आतुर.

कुछ क़िस्से दिल के शो केस में ज्यू के ट्यू अछूते से पड़े रहते है जिन्हें भूलने की नाकाम कोशिश व्यक्तित्व की जारी रहती है और यदा कदा किसी कहानी की सूरत में पन्नो में कैद होती जाती है| एक लम्बा समय गुज़र जाने के बाद भी क्या आप उस लिखे को चाहकर भी मिटा पाते है, जिन्हें एक किस्सा बना समय ने कहानियों के रूप में अतीत के लम्हों  में रचा गढ़ा था और मैंने कोरे सफ़ेद पन्नो में उकेरा था |

आज आहिस्ते- आहिस्ते रात का बढ़ता कद और मेरा उसका साथ, वक़्त बिताने का अजीब ये खेल. 

मन कि गति भी कितनी विचित्र होती है जिसके बिना जीने कि कल्पना भी नहीं थी, उन सारी यादो को संजोकर सादे पन्नो कि खूबसूरती मैली कि थी , आज उन सारी यादो को रद्दी कि तरह जला कर जीवन के हवन कुंड में बढ़ती रात के साथ स्वाह कर देना चाहता हूँ शायद इन अंतिम छड़ों में धुएं के पीछे अपने चहरे पर आय भावो को छुपाने कि भी एक कोशिश थी. 

इन गुज़रे बरसो में तमाम अनसुलझे अनकहे सवालो के जवाब खोजता रहा जिनसे परिस्थितियो को सँभालने कि ओर अच्छी समझ हो सकती थी | रात अब भोर में बदलने लगी थी और में अतीत के पन्नो से बहार आने कि कोशिश कर रहा था चारो फैले राख़ के ढेर इस बात के साक्ष्य थे जो इतने वर्षो से मन के किसी कोने में दबे भाव पन्नो में अनगिनत क़िस्से कहानियो के रूप में कभी दर्ज़ थे अब उनके वजूद सिर्फ यादो के गलियारों में सिमट के रह जायगा जहाँ सिर्फ मेरा ओर रात का सफर होगा |



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