रातो की बात : अध्याय ४
(डस्क ऑफ़ डौन )
बहुत दिनों के बाद आज तुम्हारे सहर में था कुछ दिनों का काम जो है , मगर इस काम के बीच भी तुमसे मिलने की चाहत दिल में कही बार बार सिर्फ तुम्हारे घर के रास्ते हि काम की मंजिल तक पहुँचा राहि थी फिर भी तुमसे मिलने का वक्त नहीं मिला | बता सिर्फ इस लिये रहा हूँ क्यूंकि कल वक्त तो होगा मगर हम यहाँ न होंगे | आज का काम किस्सी मौके की तरह था जहाँ हम आज फिर हार गए | जानता हूँ की अब रोज बात भी लम्बीनहीं होती हर दिन ,मगर सुकून तो है की शायद कल थोड़ी लम्बी बात होगी , तुम्हारी समझदारी का कायल हूँ , अब तो जब बुख का एहसास भी तुम्हारे याद दिलाने पर हि होता है , अपने दिल को आज सक्त करे के मेरा कल सवार रही हो | और में तुम्हारे हक का वक्त भी आज तुम्हे नहीं दे पाया |
No comments:
Post a Comment