Tuesday, September 19, 2017

रातो की बात : अध्याय ४


(डस्क ऑफ़ डौन )(भाग ३)
नौकरी के अगले पड़ाव में कुछ दिन तुम्हारे सहर में रहने को मिला , वहां तुमसे एक दो मुल्लाकात और उस दोरान हुई हलकी फुलकी बातो की यादें लिय वापस आपने सहर आया | काम की आपाधापी और रफ़्तार ने कुछ अल्पविराम लगे संवादों को हवा देने की कोसिस फिर एक बार सुरु की है| इस बार तुम्हारा ट्रान्सफर मेरे सहर हुवा वो भी कंक्रीट क जंगलो में उसी जगह जहाँ मेरे ऑफिस का पता था अंतर सिर्फ इतना तुम्हारी 10th फ्लोर मेरा 9 यहाँ भी तुम हमसे उपर | ये बात भी तब पता चली जब रात क ओवरटाइम क बाद कुछ देर सोचा ऑफिस क अस पास टहल लेते है मुलाकात एक बार फिर हमारी तरफ बढती तुमसे फिर हो गई,
वो : लगता है दिन का काम खत्तम नहीं हो पाता य इतना काम है दिन में खत्तम नहीं हो पता ?
मैं:-दोनों बाते साथ भी हो सकती है मगर फिलहाल आइये चाय हो जाये ?
वो :-क्यों, लगता है ऑफिस क बाद चाय की दुक्कन पर सेकंड शिफ्ट हो रही ,
इतनी सी बातो क दौर के बाद हम फिर चाय की टफ्ली की और थे कुछ देर साथ रहे और वही से पता चला वो अब साथ काम करेंगी "अपने सहर में" |
आलम अब ये था की जहाँ मैं हफ्ते के पञ्च दिन ऑफिस के एम्प्लोयी रिटायरिंग रूम को आपना कमरा बना रखता था, दिन-रात जहाँ सिर्फ मैं रहा करता था, जिस कमरे का नाम अब "मोहित सर का रूम " हो गया था उसे अब शिफ्ट करने का वक्त आगया था | मैंने जिंदगी में शायद इन 10 सालो में पहली बार शिफ्ट रूटीन अपनाइ थी ,मेरे लिय भी नया था और मेरे साथियों के लिय भी|
बॉस ने युही पूछ लिया : सब ठीक तो है !
मैं:-हमने कहा पहले काम तो था वजह नहीं अब काम तो है ही शायद वजह अब मिल गई |

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