डायरेक्ट दिल
से में बहुत दिनों से कुछ खास लिखा नहीं , शायद दिल कुछ कहना हि नहीं चाहता था ,
मगर फिर भी कुछ सोच के दिल की बात मान कर अपने पुराने आधे अधूरे ख्वाबो में लौट चलने को बेक़रार दिल ने आज फिर कलम को साथी बना
हि लिया . जरुरी उम्र में गैर जरुरी चेजो के पीछे भागता रहा और हर बार नए सपनो की आस में खुद को हि दोखा देता रहा |
उम्र थी तब,
जब ,ख्वाब नए थे ,जोश उमंग तरो ताज़ा ,फिर न जाने क्यों अपने हि सपनो को समय नहीं
दे पाया , कुछ न जान पाया न समझ पाया , अब जब उम्र भी नहीं है जोश भी नहीं है |
शायद य कभी समझ हि नहीं पाया की “ मैं चाहता क्या था खुद से ? शायद वो तो नहीं जो
अब हूँ न आपने घर वालो की उम्मीद से ,न हि वो हूँ जो कभी बन सकता था | फिर सोचा की
चलो जब सब हार हि चूका हूँ तो खोने को अब बचा हि क्या? अब खुद को बहुत सी चीजों से
अलग कर रहा हूँ , सच य भी है की अकेले में कुछ कर भी नहीं सकता मगर अब परवाह नहीं |
एक अलग पहचान बनाने की कोसिस को शायद अकेले संघर्ष की जरुवत है, इस नई सुरुवात की कीमत शायद
कई पुराने किनारों के अंत भी है |
अगर मैं खुद क
लिय कुछ नहीं कर सकता तो खुद से औरो को क्या उम्मीद रखने दूँ | मैं आपने लिय जीता
रहा और यही सोचता रहा की सब यही चाहते है , आपने फैसलों को उनका समझ क पूरा करता
रहा मगर य न कल सच था न आज | बहुत कुछ सिखा रही है जिंदगी , बैमानी जगह आपना वक्त
बर्बाद करता रहा ताजुब की बात है की य जानते हुए भी की वक्त की बर्बादी है मैं वही
करता रहा , खुद को रोक नहीं पाया |
हर बार नए
सिरे से सुरुवात करता हूँ और नए सिरे से गर्दिश से गिरता हूँ , शायद कभी चलना सिखा
हि नहीं और बातों में ऊँची उड़ान भरता रहा , लोगो को लगता है किस्मत ने साथ नहीं
दिया मगर क्या कभी मैंने किस्मत को मजबूर किया साथ चलने को ? मेरा साथ से किस्मत
अभी तक ऐस्सा कुछ किया हि क्या है |
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