कई बार
मेरे से लोग पूछते है आखिर तुम जो लिखते हो उसकी वजह क्या है? कहाँ से चुराकर लिखते
हो ? कई बार जब लिखना शुरु करता हूँ तो लोगो को उसका सारांश समझ नहीं आता ? इन सब
सवालो के जवाब में केवल एक ही बात कह सकता हूँ ,में लिखता हूँ क्यूंकि मुझे इसकी
जरुवत है | मैं वह सब लिख कर कागज पर उतार देना चाहता हूँ, जो मेरे मन में चलता
रहता है , जिसकी मुझे परवाह भी नहीं करनी
पड़ती | मैंने कभी कोई अपना सपना या
कोई ऐसी बात नहीं लिखी जिनसे में कभी रु-बा-रु ना हुवा हूँ , मेरे अपने तजुर्बे को कागज पर उकेरा है , अच्छे
बुरे जेसे भी थे वो मेरे अपने थे | जब भी लिखता हूँ तो इस सजीव दुनिया में “मैं” अपनी
बात कम से कम खुद से तो कह पता हूँ , थोडा
इसी बहाने अपने आप को आपने जज्बातों से अलग कर के वास्तविकता समझने की कोशिस भी कर
लेता हूँ क्यूंकि कही पढ़ा था “जीवन का
दर्द इस संसार का सबसे बड़ा उपहास है और सीख
उसकी इनाम” | मेरी लिखने की एक वजह शायद ये भी है कि इस दुनिया में “मैं” ही ऐस्सा
व्यक्ति हूँ जिसकी बात दुनिया को अगर बताऊ तो “वो” मुझसे बुरा नहीं मानेगा |
Sunday, August 27, 2017
Friday, August 25, 2017
sararah
बहुत दिनों से सरारह के बारे में सोच रहा था, ये एक सोच तो सही थी की
जिनको अगर कुछ भी कहना हो तो बिना डरे कह सकते है और सामने वाले का रिएक्शन भी जान
सकते है | खास बात ये थी कि आपकी पहचान दुनिया से छुपी रहती है | फिर ये लगा की
क्या फर्क पड़ता है क्यूंकि बहुत से लोग इसको मजाक एंड प्रैंक्स क लिय इस्तेमाल कर
रहे है, चलो आज डायरेक्ट दिल से में सरारह कि आड़ लिये बिना कुछ बाते कबूल करता हूँ
और उम्मीद करता हूँ कि जो भी रिएक्शन हो वो पता जरुर चले |
कल जब कानपूर में था तो पुराने दिन और
उनसे जुड़ी यादे जेहन में चल रही थी...... हर चीज़ जो सामने पड़ती उसकी पुरानी धुंधली
तस्वीर सामने होती....नए पुराने के बीच आते जाते विचार और उन सब में डूबा हुवा मैं
.... मानो सारी थकान मेरे से जुदा होकर नयी सोच क साथ हो चली थी........ झकरकट्टी
आज भी वैसा था जैसा ६ साल पहले.......ट्रैन क सफर छोड़ क मैंने बस चुना क्यूंकि वो
पुराने नज़ारे इतने आम नहीं मेरे लिए...... कई सालो के बाद वो सफर कानपूर से इलाहबाद
मज़ा आगया..... वही डिफेन्स कॉलोनी क्रासिंग का जाम और नया बनता फ्लाई ओवर.... रमा
देवी की अलग पहचान....थकान जब तक पूरी तरह से हावी होती में चुडगरा तक आ गया
था.... इस बीच रस्ते की हर चीज़ अलग ही थी कुछ नये और पुराने कहीं कुछ निगाहो को
पहचान बताता तो कुछ अपने नये होने की बात करता , जो भी था वो एह्साह कमाल का था | आज भी रावतपुर
क्रासिंग की शान रेव मोती.... वो तो यार
अल्टीमेट था.. बस वक़्त थोड़ा कम था वरना सब कुछ एक बार फिर जीता... यूँ तो एक साल
पहले भी कानपूर में ही था पर इस बार सिर्फ पुराने दिन क लिए यहाँ था वो पल जब पहली
बार घर से निकला था... वो पल जब तक हार कर नई सोच क साथ में ही बदल गया, वो
आज का मोहित नहीं पुराना वाला था जो कल जिन्दा हो कर , एक पूरा दिन जिया .न कोई फ़ोन न कोई टेंशन ...... बस
खुले अस्समान क निचे बहती हवाओ क साथ पुराना याराना .......वो
कुछ घंटे क वक़्त ने जाता दिया हमको हम..... क्या से क्या हो गये कल और आज में
कितना बदल गये ना जाने कितने आपने इन रास्तो में अलग हो गये जिनका साथ मायने रखता
था ?
Wednesday, August 23, 2017
Direct Dil Se
It's all about "What you achieve in life ?" No maters your worth yesterday but what yours worth in present and future growth even having your darkest past ,all you have to worry about the hard work and energy you put in your work with dedications . Parameters may be anything but at least you had your faith in yourself alive backing up to upfront once more to face devil face of reality. life was never an evil but was "Expectations unquenched."
Sunday, August 20, 2017
mein
मैं बहुत दिनों से ये समझने की कोसिस कर रहा था और प्रामाणिक तौर पर अपनी ही बातो को रिकॉर्ड करते जा रहा था जैसा की आज भी मैंने किया , में दार्शनिक तौर पे बहुत से लोगो की बहुत सी गलतियों को नोटिफीय तो कर ही रहा था साथ ही इस बात को नज़र अंदाज़ भी की शायद में उन लोगो जैसा शायद बन भी नहीं पाउँगा , सभी लोगो की खासियतें अलग अलग होती है साथी उनकी कमिया भी , बात तो तब है जब किसी की कमिया आप बताय तो मगर उस गलती को खुद भी न दोहराहे में पिछले कुछ हफ्ते से कई चीज़ो खुद को अलग करने की नाकाम कोसिस करता रहा हूँ और य तो जान ही गया हूँ में खुद को जिस आईने में देखना चाहता हूँ उसको तराशना मेरे को ही है उम्र हो चुकी की अब्ब गलतियों की जुंजाईश कम की जाय
Saturday, August 19, 2017
purvanuman
खोजी लोगो की तमाम खासियतों में एक यह भी है कि वो संदेह बहुत करते है ऐसे कि उनको हर जगह उसके होने कि वजह और उससे होने वाले परिणामो कि चिंता रहती है , रचनात्मक होने क लिए किसी स्कूल या यूनिवर्सिटी कि जररूत नहीं होती , सिर्फ खुद को समझने और अहंकार को ख़तम करने कि जरूरत है , अंहकार के कई स्वरूपों में एक , मैँ सब जनता हूँ और आगे ऐसा ही होगा क्यूंकि अभी तक ऐसा ही होते आया है , इन सब को भूल कर ही हम आगे बढ़ सकते है अपने पूर्वानुमानो को ज ब तक जांच न ले किसी तर्क को उसका अंजाम नहीं माने
Saturday, August 5, 2017
मुकाम
अभी तक थोडा ही खुद को समझ
पा रहा हूँ, जरुरी चीजों को दर किनार कर बहुत सी गैर जरुरी चीजों का दिमाग में
समायोजन होता जा रहा , उम्र आपनी ही रफ़्तार में बढ़ रही जिंदगी कम हो रही , मगर असल
परेशानी का सबक उम्र या जिंदगी नहीं वो सारे मुकाम है जो आपने हो सकते थे मगर हमने
उनको निकल जाने दिया, बहुत से लोग कहते है
जिंदगी में मौके बहुत मिलते है मगर मेहनत करने वालो को , अब सवाल ये है की हम पीछे
कहा रह जाते है इन दोनों में ?
जिंदगी में सवालो के ढेर
होते जा रहे और उनके जवाब नाकाफ़ी | मुक्कमल जिंदगी हो ना हो एक मुक्कमल कल आने
वाले कल के नाम जरुर हो | हताशा ने अभी सिर्फ दस्तक दी उसको अभी भी घर के अंन्दर
आने नहीं दिया देखते है किसकी जिद बड़ी है हताशा जो अंदर आना चाहती है या में जो
बाधा बन उसके रस्ते अभी भी खड़ा हूँ|
Wednesday, August 2, 2017
Story never been told.
Fear
is the most un-predective and common experiences of once life. Actually, man
fear from things that in reality are not so screamy and fearful as once own
conscious made the facts in subconscious to suit in the situation and make it
more worst. Fear is to face the situation and work, which may be because of the
reason, negativity present in our own minds we never wanted to come out from
our comfort zone of living due to which the deep sowed seed of fear in our
subconscious mind starts growing with our age without being generally noticed.
This
is the story, where one is considered to be fearless strong tough in the
circumstances of life but actually does everyone has overcome his or her fear?
This is the story of the person who had lived his life under his choices but in
the lights of his parents. Story starts when I first saw her. She was topper of
our class most beautiful innocent smile I was with. She was on the count of 9.8
out of 10 in the eyes of every person in our school and the all-rounder
whenever any extracurricular or other activity were organized there where the
fight between rest of the positions except first…after all, this position was
patent for her. I was in the same school in which my sisters had their
schooling too and they were among the toppers and all teachers were expecting
me to produce and repeat what the benchmarks of my sisters had produced but I
was different from them every single individual is different from others but
our society is one which never see the potentials but they are programmed to
judge the others on count of what they want to make and see others. My starting
was in just as all other but I recognized in early age to break the trend and
known as by my name just AS RUDRA… whose funda of life is to live in full
throttle mood. Never had fear of what comes to next, a total headache and for
some stupid idiot freak who never had been in the serious talks although the
short tempered. Two opposite qualities residing beneath the behavior of mine.
When she came across my life and we had some conversation going on… I just
realize that something was in her that make me complete while as a good friend
she always knew what I was upto on any situations. She being the nicest girl I
would have ever known in any part of my life. She exactly know what she need when
and how also along with the fact where I suits in. School days are always
adorable but for me it was nothing more than the passing days.
Lame memory Lane
after a whole long time i opened a photo album of mine , pics contained all the good times just paused and giving a hope to rewind the memory lane once again go wild. i was amazed to see what we have lived in past the joy happiness of being togetherness but still they were only stills of pasts never to be again as it was ever, only the hope to create the similar acts but never the same. While in many seen a pic of yours again but noting new came in mind as that there was nothing after all.
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