बहुत दिनों से सरारह के बारे में सोच रहा था, ये एक सोच तो सही थी की
जिनको अगर कुछ भी कहना हो तो बिना डरे कह सकते है और सामने वाले का रिएक्शन भी जान
सकते है | खास बात ये थी कि आपकी पहचान दुनिया से छुपी रहती है | फिर ये लगा की
क्या फर्क पड़ता है क्यूंकि बहुत से लोग इसको मजाक एंड प्रैंक्स क लिय इस्तेमाल कर
रहे है, चलो आज डायरेक्ट दिल से में सरारह कि आड़ लिये बिना कुछ बाते कबूल करता हूँ
और उम्मीद करता हूँ कि जो भी रिएक्शन हो वो पता जरुर चले |
कल जब कानपूर में था तो पुराने दिन और
उनसे जुड़ी यादे जेहन में चल रही थी...... हर चीज़ जो सामने पड़ती उसकी पुरानी धुंधली
तस्वीर सामने होती....नए पुराने के बीच आते जाते विचार और उन सब में डूबा हुवा मैं
.... मानो सारी थकान मेरे से जुदा होकर नयी सोच क साथ हो चली थी........ झकरकट्टी
आज भी वैसा था जैसा ६ साल पहले.......ट्रैन क सफर छोड़ क मैंने बस चुना क्यूंकि वो
पुराने नज़ारे इतने आम नहीं मेरे लिए...... कई सालो के बाद वो सफर कानपूर से इलाहबाद
मज़ा आगया..... वही डिफेन्स कॉलोनी क्रासिंग का जाम और नया बनता फ्लाई ओवर.... रमा
देवी की अलग पहचान....थकान जब तक पूरी तरह से हावी होती में चुडगरा तक आ गया
था.... इस बीच रस्ते की हर चीज़ अलग ही थी कुछ नये और पुराने कहीं कुछ निगाहो को
पहचान बताता तो कुछ अपने नये होने की बात करता , जो भी था वो एह्साह कमाल का था | आज भी रावतपुर
क्रासिंग की शान रेव मोती.... वो तो यार
अल्टीमेट था.. बस वक़्त थोड़ा कम था वरना सब कुछ एक बार फिर जीता... यूँ तो एक साल
पहले भी कानपूर में ही था पर इस बार सिर्फ पुराने दिन क लिए यहाँ था वो पल जब पहली
बार घर से निकला था... वो पल जब तक हार कर नई सोच क साथ में ही बदल गया, वो
आज का मोहित नहीं पुराना वाला था जो कल जिन्दा हो कर , एक पूरा दिन जिया .न कोई फ़ोन न कोई टेंशन ...... बस
खुले अस्समान क निचे बहती हवाओ क साथ पुराना याराना .......वो
कुछ घंटे क वक़्त ने जाता दिया हमको हम..... क्या से क्या हो गये कल और आज में
कितना बदल गये ना जाने कितने आपने इन रास्तो में अलग हो गये जिनका साथ मायने रखता
था ?
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